मध्यप्रदेश के इतिहास की महत्वपूर्ण घटनाएँ, प्रमुख राजवंश


 मध्यप्रदेश के इतिहास की  प्रमुख  घटनाओं  में  तो  घटनाये  वर्षानुसार  तो सिर्फ आधुनिक  इतिहास  मैं ही ज्ञात  है    
फिर भी  कुछ घटनायें  जो  प्रागैतिहासिक  काल के हैं  जो निम्न  हैं 

पाषाण  काल = पत्थर  काल  

  • पाषाण  मतलब  पत्थर  वाला  काल 
प्रागैतिहासिक  काल (लिपि  नहीं )
1. पुरापाषाण  काल 
2. मध्यपाषण  काल 
3. नवपाषाण  काल 
4. आद्यैतिहासिक  काल या ताम्र पाषाण काल 

पुरापाषाण काल (Paleolithic Period) लगभग 2.5 लाख  से  10000  ईसा पूर्व 

  •  नर्मदा घाटी से ही सर्वाधिक पाषाण कालीन स्थल एवं उपकरण प्राप्त हुए हैं। यहाँ पर हस्तनिर्मित एवं प्राकृतिक वस्तुओं को औजार या हथियार के रूप में प्रयोग किया जाता था।
  • इस काल के प्रमुख औजारों में बिना हत्थे वाली कुल्हाड़ी, हत्थे वाली कुल्हाड़ी (हस्तकुठार), खुरचन तथा मुष्ठ आदि सम्मिलित थे। ये कुल्हाड़ियाँ नर्मदा घाटी के उत्तर में देवरी, सुकचाई नाला बुधाना, केन घाटी, बरखस,तथा दमोह जिले में प्राप्त हुए हैं
  • इसी काल में सीहोर जिले से मानव खोपड़ी मिली जिसका नाम नर्मदा मानव रखा गया है
  • नरसिंहपुर जिले में भूतरा नामक स्थान पे पाषाण कालीन उपकरण मिला है
  • महादेव  पिपरिया से 860  औजार मिले हैं 

मध्यपाषाण  काल (mesolithic period )लगभग  10000  ईसा  पूर्व 

  • सोन  घाटी  से  464  औजार  मिले 
  • मंदसौर ,नाहरगढ़ ,इंदौर ,भीमबेटका ,सीहोर  से उपकरण  मिले हैं 
  • बी. बी  मिश्रा  ने भीमबेटका  से ब्लेड  अवयव  ढ़ूँढ़ा
  • आर.बी  जोशी ने होशांगाबाद स्तिथ 25 हजार उपकरण  प्राप्त किये 

नवपाषण काल (neolithic period ) लगभग 5000 ईसा पूर्व     

  • इस  काल  के   औजार  जटकारा,जबलपुर, दमोह,सागर, होसंगाबाद मे  मिलते हैं 
  • भोपाल  के बैरागढ़  के निकट  स्थित  शैलाश्रय ,में  अर्धचन्द्राकार  तथा समलम्ब  नवपाषाणकालीन  उपकरण मिले  है 

ताम्रपाषाण  काल ( chalcolithic  period )

  • मध्यप्रदेश में में हरप्पा संस्कृति के चिन्ह नहीं मिले है
  • मालवा क्षेत्र के नागदा,अवड़ा, नवदाटोली, बेश नगर में  ताम्र कालीन उपकरण मिले है
  •  मालवा में मूर्तियों में वृषभ का प्रमाण मिला है

  ऐतिहासिक  काल (लौह काल)

  •  मध्यप्रदेश में लौह काल के उपकरण मालवा, भिंड मुरैना से प्राप्त हुए हैं जिनमें धूसर चित्रित मृदभांड के अवशेष मिले है
  • राज्य   सैंधवकालीन  संस्कृति नहीं मिली   हैं 

वैदिक सभ्यता 

  • उत्तर वैदिक संहिताओं, ब्राह्मण ग्रंथों एवं आरण्यकों में मध्य प्रदेश से संबंधित विवरण प्राप्त होते हैं। कौषीतकि उपनिषद् में अप्रत्यक्ष रूप से विंध्य पर्वत का उल्लेख है।शतपथ ब्राह्मण तथा वैदिकोत्तर साहित्य में रेवोत्तरम् का उल्लेख मिलता है, जिसे इतिहास कार वेबर द्वारा रेवा नदी मानते हैं।
  • महर्षि अगस्त्य के नेतृत्व में नर्मदा घाटी में यादवों का एक समूह बस गया था और यहीं से इस क्षेत्र में आर्यों का आगमन प्रारंभ हुआ। उत्तर वैदिक काल  में कुछ अनार्य विशेष कर निषाद जाति के लोगों का ऐतरेय ब्राह्मण में उल्लेख मिलता है, जो मध्य प्रदेश के घने जंगलों में निवास करते थे।

 महाजनपद  काल 

प्राचीन नाम नवीन   नाम 
अवन्ति उज्जैन 
वत्स ग्वालियर 
चेदि खजुराहो 
अनूप निमाड ( खण्डवा/खरगौन)
दशार्णविदिशा 
तुंडिकेर दमोह 
नालपुर नरवर (शिवपुरी)

600 ईसा पूर्व  जब   महाजनपद  थे तब इस राज्य  से 2  चेदि  तथा अवन्ति  जनपद  थे 

जनपद

अवन्ति  
भाग 
उत्तरी अवन्ति
दक्षिणी  अवन्ति
                    
नदी बेतवा
राजधानी 
उज्जयनी
महिष्मति  
  • जीवक के लेखों में विदिशा, गोननद (आधुनिक दुराहा),उज्जैन तथा माहिष्मती का उल्लेख मिलता है।
  •  बौद्ध तथा जैन ग्रंथों के अनुसार, अवन्ति के दो अन्य प्रसिद्ध नगर कुररघर तथा सुदर्शनपुर थे। अवन्ति बौद्ध धर्म का भी सुप्रसिद्ध केन्द्र था। इसका बौद्धकालीन नाम अच्युतगामी अथवा अच्युतगामिनी था।

चेदि

चेदि राज्य का विस्तार सोन और नर्मदा घाटियों के मध्य था। परवर्ती चेदि राज्य में कलचुरि वंश का शासन था, जिसका विस्तार उत्तर में कालिंजर तक था, महाभारत कालीन चेदि राज्य की राजधानी शुक्तिमती या शुक्तिसाह्वय थी, जिसे जातक कथाओं में सोत्थिवती कहा गया है।

प्रथम  शासक  -कोवकल  प्रथम 

राजधानी -त्रिपुरी 

मौर्य काल(323 -187 ईसा पूर्व )

  •  बिंदुसार के शासन काल में अशोक 11 वर्ष तक अवन्ति का प्रांत पाल था। उसने उज्जयिनी को अपनी राजधानी बनाया था। मध्य प्रदेश के गुर्जरा एवं रुप नाथ लघु शिलालेख से अशोक के शासन की जानकारी मिलती है। गुर्जरा लघु शिलालेख में अशोक का नाम अशोक, देवनाप्रिय, प्रियदर्शिन् उल्लिखित हैं।
मौर्यकालीन स्मारक
साँची का स्तूप : सम्राट अशोक ने तीसरी शताब्दी ई.पू. में साँची के बौद्ध स्तूप का निर्माण करवाया था, जो मूल रूप से ईटों से निर्मित था। 1818 ई. में जनरल टेलर ने साँची स्तूप की खोज की थी।
तुमैन का स्तूप : तुमैन (जिला गुना) विदिशा तथा मथुरा को जोड़ने वाले व्यापारिक मार्ग पर स्थित है। यहाँ पर तीन मौर्यकालीन बौद्ध स्तूप स्थापित किए गए थे।
उज्जैन का बौद्ध महास्तूप : सम्राट अशोक द्वारा अपनी पत्नी कुमार देवी के लिए उज्जैन में एक विशाल स्तूप का निर्माण करवाया गया था, जिसके अवशेष वैश्य टेकरी (कानीपुरा) नामक टीले के रूप में विद्यमान हैं।
कसरावद के स्तूप : कसरावद (जिला खरगोन) में स्थित इतबर्डी नामक टीले के उत्खनन से 11  मौर्यकालीन स्तूप प्राप्त हुए हैं।
देउरकोठार के स्तूप : देउरकोठार (जिला रीवा) में मौर्यकालीन बौद्ध स्तूप प्राप्त हुए हैं।
पनगुड़ारिया का स्तूप : पनगुड़ारिया (सीहोर) से भी मौर्यकालीन प्रदक्षिणापथ युक्त स्तूप प्राप्त हुआ है

.

शुंग  वंश  ( 184-72 ई.पू.)

  • पुष्यमित्र ने 184 ईसा पूर्व में अंतिम मौर्य सम्राट बृहद्रथ की हत्या कर शुंग वंश की स्थापना की  थी।मालविकाग्निमित्रम्, जो महाकवि कालिदास द्वारा रचित एक नाट्य ग्रन्थ है, से पता चलता है कि पुष्यमित्र शुग का पुत्र अग्निमित्र विदिशा का राज्यपाल था 
  • शुंग वंश के वंशज उज्जैन से संबंधित थे।
  •  शुंग वंश के आठवें शासक भागवत् (काशीपुत्र भाग भद्र) के शासनकाल में ग्रीक राजा एंटिआल्किडस का राजदूत हेलियोडोरस विदिशा आया था। उसने यहाँ भगवान विष्णु को समर्पित प्रसिद्ध गरुड़ स्तम्भ का निर्माण करवाया था। इसे वर्तमान में खामबाबा के नाम से जाना जाता है।
  • भरहुत  बौद्ध स्तूप  का पुनर्निर्माण  शुंग वंश ने  करवाया था 
  • साँची  के स्तूप के चहारदीवारी   प्रवेश द्वार  भी शुंग काल  में  करवाए गए 

    सातवाहन  वंश 

                     संस्थापक शासक– सिमुक 

प्रपौत्र -गौतमी पुत्र शातकर्णी का उल्लेख साँची स्तूप के दक्षिणी तोरण (द्वार ) के शिलालेख में भी किया गया है।

  • सातवाहन शासकों में राजा सिरिसात के नामाँकित सिक्के उज्जैन, देवास, होशंगाबाद (जमुनिया), जबलपुर (तेवर,भेड़ाघाट, त्रिपुरी) तथा वशिष्ठी पुत्र पुलुमावी (130 ई. से 154 ई.) के सिक्के भिलसा एवं देवास से प्राप्त हुए हैं।
  • अंतिम सातवाहन शासक यज्ञश्री शातकर्णी (165 ई. से 193 ई.) के सिक्के बेस नगर, तेवर और देवास से प्राप्त हुए हैं। त्रिपुरी से सातवाहन वंश के शासकों द्वारा जारी सीसे के सिक्के प्राप्त हुए हैं।

कुषाण वंश 

  • कुषाण वंश के संस्थापक कुजुल कडफिसेस था। 
  • इस वंश का सबसे प्रतापी राजा कनिष्क था। इनकी राजधानी पुरुषपुर या पेशावर थी। कुषाणों की द्वितीय राजधानी मथुरा थी।
  • कनिष्क ने 78 ई० (गद्दी पर बैठने के समय) में एक संवत् चलाया, जो शक-संवत् कहलाता  है जिसे भारत सरकार द्वारा प्रयोग में लाया जाता है।
  • महान  शासक  कनिष्का का  उल्लेख  मालवा  के क्षेत्रो  से मिलता हैं 
  •  उसने  शको  को हराकर  क्षेत्रो   कब्ज़ा  जमाया था 
  • सांची व भेड़ाघाट से कनिष्क संवत् 28 का एक लेख मिला है। यह वासिष्क का है तथा बौद्ध प्रतिमा पर खुदा हुआ है।
  • बौद्ध धर्म की चौथी बौद्ध-संगीति कनिष्क के शासनकाल में कुण्डलवन (कश्मीर) में प्रसिद्ध बौद्ध विद्वान वसुमित्र की अध्यक्षता में हुई।
  • कनिष्क बौद्ध धर्म के महायान सम्प्रदाय का अनुयायी था।

कनिष्क के राज दरबार में निम्न विद्वानों की उपस्थिति थी

  • अश्वघोष, राज कवि (रचनाएं-बुद्धचरित्र।,सौन्दर्यानन्द व सारिपुत्र प्रकरण), 
  • आचार्य नागार्जुन,(  भारत  का आईन्स्टीन )माध्यमिक  सूत्र 
  •  पार्श्व, 
  •  वसुमित्र
  • मातृचेट, 
  • संघरक्ष 
  •  चरक (चरक संहिता ग्रन्थ)।

नाग  वंश 

  •  कुषाणो  के बाद नाग वंश  ने शसन  किया ,राजधानी  पद्मावती(ग्वालियर) को  बनाया 
  • स्थापना  विदिशा   हुई ,पर   ग्वालियर से मथुरा  तक  फैली 
  • ,कुषाणो  का बहुत  प्रतिरोध  किया 

गुप्त  वंश (280 -550 ईस्वी )

संस्थापक –श्री  गुप्त 

राजधानी -पाटलिपुत्र (पटना)

  • महान शासक -चन्द्रगुप्त प्रथम ,उपाधि महराजाधिराज, गुप्त संवत की शुरुआत किया (319-320) ईसा पूर्व
  • समुद्र गुप्त भारत का नेपोलियन कहलाया
  • इसने सागर जिले में एरण का निर्माण कराया
  • गुप्त काल में उदयगीरी कि गुफाओं सिंगवा के मंदिरों का उल्लेख मिलता है

गुप्तकाल के अभिलेख

            अभिलेख  महत्वपूर्ण तथ्य
मंदसौर अभिलेखगुप्त सम्राट कुमार गुप्त द्वितीय केशासनकाल का मंदसौर (दशपुर)अभिलेख प्राप्त हुआ जो पश्चिमीमालवा में स्थित है। इन्होंने दशपुरमें एक सूर्य मंदिर का निर्माणकराया था। यह अभिलेख साहित्यिकसंस्कृत भाषा में उत्कीर्ण करवायागया था, जिससे तत्कालीनसामाजिक, धार्मिक तथा सांस्कृतिकअवस्था पर पर्याप्त प्रभाव पड़ता है।
उदयगिरी शिलालेखराय सेन जिले में स्थित इस अभिलेखमें शंकर नामक व्यक्ति द्वारा इसस्थान पर पार्श्वनाथ की मूर्ति स्थापितकिये जाने का उल्लेख है।
साँची अभिलेख साँची से प्राप्त इस अभिलेख मेंहरिस्वामिनी द्वारा काकनादबोट मेंस्थित यहाँ के आर्य संघ को धनका दान दिये जाने का उल्लेख कियागया है।
तुमैन अभिलेखगुना जिले में स्थित इस अभिलेख मेंराजा कुमार गुप्त को शरद्कालीनसूर्य की भाँति बताया गया है।
ऐरण अभिलेखयह अभिलेख सागर जिले में स्थित है इसका नाम स्वभोग नगर था। एरण अभिलेख हूणों कीउपस्थिति को दर्शाता है 
  • गुप्तकाल में निर्मित  गुफा बाघ की गुफा है, जो ग्वालियर के समीप बाघ नामक स्थान पर विंध्यपर्वत को काटकर बनायी गयी थी।
  • चन्द्रगुप्त II के शासनकाल में संस्कृत भाषा का सबसे प्रसिद्ध कवि कालिदास थे।
  • चन्द्रगुप्त II के दरबार में रहनेवाले आयुर्वेदाचार्य धन्वन्तरि थे ।
  • गुप्तकाल में विष्णु शर्मा द्वारा लिखित पंच तंत्र (संस्कृत) को संसार का सर्वाधिक प्रचलित ग्रंथ माना जाता है।  

इसे पाँच भागों में बाँटा गया है-

               (1) मित्रभेद, 

               (2) मित्रलाभ

                (3) संधि विग्रह,

                (4) लब्ध प्रणाश, 

               (5) अपरीक्षाकारित्व ।

  • चन्द्रगुप्त II के दरबार में रहनेवाले प्रमुख विद्वान वराहमिहिर,धन्वन्तरि, ब्रह्मगुप्त आदि थे।
  • पुराणों की वर्तमान रूप में रचना गुप्तकाल में हुई। इसमें ऐतिहासिक परम्पराओं का उल्लेख है।
  • गुप्तकाल की राजकीय भाषा (Official language) प्राकृत थी।
  • गुप्तकाल में चाँदी के सिक्कों को रूप्यका कहा जाता था।
  • याज्ञवल्क्य, नारद, कात्यायन एवं बृहस्पति स्मृतियों की रचना गुप्तकाल में ही हुई।
  • मंदिर बनाने की कला का जन्म गुप्तकाल में ही हुआ।
  • सांस्कृतिक उपलब्धियों के कारण गुप्तकाल को भारतीय इतिहास का स्वर्ण युग कहा जाता है ।

 परमार  वंश  

  •  परमार वंश का संस्थापक उपेन्द्रराज था।
  •  इसकी राजधानी धारा नगरी थी। (प्राचीन राजधानी-उज्जैन) 
  • सियक द्वितीय द्वारा राज्य त्याग के पश्चात् उसका पुत्र वाक्पति मुंज (लगभग 973-998 ई.) शासक बना मुंज एक महान योद्धा, विद्वान एवं सुयोग्य प्रशासक था। उसके समय मालवा में स्वर्ण युग का आरंभ हुआ। उसने धार में मुंज सागर झील का निर्माण करवाया। मुंज के द्वारा महेश्वर, उज्जैन, ओंकारेश्वर और धरमपुरी में भी सुंदर मंदिरों का निर्माण करवाया गया।
  •  नवसाहसाङ्कचरित के रचयिता पद्मगुप्त, दशरूपक के रचयिता धनंजय, धनिक, हलायुध एवं अमित गति जैसे विद्वान वाक्यपति मुंज के दरबार में रहते थे। जो  राजा  भोज के  चाचा  थे 
  • परमार वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली शासक राजा भोज था।
  •  राजा भोज ने भोपाल के दक्षिण में भोजसर नामक झील का निर्माण करवाया।
  • राजा भोज ने चिकित्सा, गणित एवं व्याकरण पर अनेक ग्रंथ लिखे। भोजकृत युक्तिकल्पतरु में वास्तुशास्त्र के साथ-साथ विविध वैज्ञानिक यंत्रों व उनके उपयोग का उल्लेख है।
  • कवि राज की उपाधि से विभूषित शासक था—राजा भोज ।
  • भोज ने अपनी राजधानी(धार ) में सरस्वती मंदिर का निर्माण करवाया था।
  • इस मंदिर के परिसर में संस्कृत विद्यालय भी खोला गया था।
  • राजा भोज के शासनकाल में धारा नगरी विद्या एवं विद्वानों का प्रमुख केन्द्र थी।
  • भोज ने चित्तौड़ में त्रिभुवन नारायण मंदिर का निर्माण करवाया।
  • भोजपुर नगर की स्थापना राजा भोज ने की थी

       भोज  द्वारा  लिखित  ग्रन्थ 

  1. आयुर्वेद सर्वस्व
  2. समरांगण सूत्र धार इत्यादि 

चंदेल  वंश 

    प्रतिहार साम्राज्य के पतन के बाद बुंदेलखंड की भूमि पर चन्देल वंश का स्वतंत्र राजनीतिक

     इतिहास प्रारंभ हुआ। 

  • बुदेलखंड का प्राचीन नाम जेजाकभुक्ति है।
  • चन्देल वंश का संस्थापक नानुक  (831 ई०) है 
  •  इसकी राजधानी खजुराहो थी। प्रारंभ में इसकी राजधानी कालिंजर (महोबा) थी।
  • चदेल वंश का प्रथम स्वतंत्र एवं सबसे प्रतापी राजा यशोवर्मन था।
  • यशोवर्मन ने कन्नौज पर आक्रमण कर प्रतिहार राजा देव पाल को हराया तथा उससे एक

           विष्णु की प्रतिमा प्राप्त की, जिसे उसने खजुराहो के विष्णु मंदिर में स्थापित की।

  • राजा धंग ने अपनी राजधानी कालिंजर से खजुराहो में स्थानान्तरित की थी, ग्वालियर पे  अधिकार जमाया 
  • धंग ने जिन्ननाथ, विश्वनाथ एवं वैधनाथ मंदिर का निर्माण करवाया। कंदरिया महादेव मंदिर

            का निर्माण धंगदेव द्वारा 999 ई० में किया गया।

  •  धंग के पुत्र गंड (1008 ईस्वी ) ने जगदम्बी  और चित्र गुप्त  मंदिर  बनवाये 
चंदेल वंश  वंशावली 
नानुक 
वाक्यापति 
जयशक्ति या जेजाज़ 
विजयशक्ति या  विज्जक 
राहिल 
हर्षदेव 
यशोवर्मन 
धंग 
गण्ड 
विद्याधर 
  •  अंतिम योग्य  चंदेल शासक परमार्दिदेव( 1182 ) हुये जिनके वीर सेनापति आल्हा और ऊदल    ने  पृथ्वी राज चौहान से युद्ध में अत्यधिक शौर्य के साथ युद्ध किया
  • अंतिम  ज्ञात  शासक  हम्मीरवर्मन (1288 -1330ईस्वी) को माना जाता है 

दिल्ली  सल्तनत 

  •  1019 में महमूद गज़नवी ने कालिंजर एवं ग्वालियर पर आक्रमण किया 
  • 1195-96 ई में मोहम्मद गोरी ने ग्वालियर के सल्लक्षण या लोहांगदेव पर आक्रमण किया
  • कुतुबुद्दीन ऐबक ने 1202-03 ई. में बुन्देलखण्ड पर आक्रमण किया और चंदेल शासक परमार्दिदेव को पराजित कर कालिंजर, महोबा और खजुराहो पर अधिकार कर लिया।
  • ऐबक का पहला आक्रमण  उज्जैन पे  हुआ 
  • इल्तुतमिश (1210-1236 ई.) ने मांडू, ग्वालियर और मालवा को जीता तथा उज्जैन स्थित महाकालेश्वर

          मंदिर में लूटपाट की। 1231 ई. में इल्तुतमिश ने ग्वालियर दुर्ग पर आक्रमण कर प्रतिहारों को पराजित किया 

  • नरवर्मन् ने तुर्कों के साथ मिलकर ग्वालियर पर आक्रमण कर दिया, जिसके परिणाम स्वरूप ग्वालियर पर तुर्कों का अधिकार हो गया। इस युद्ध में सहायता करने के बदले इल्तुतमिश ने नरवर्मन को शिवपुरी पर अधिकार प्रदान किया। 
  • 1234 ई. में छहदेव नामक राजपूत सरदार ने इल्तुतमिश को पराजित किया था।
  •  मालवा के शासक महलकदेव को अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति एन-उल-मुल्क ने पराजित किया था।
  • 1292 ई. में अलाउद्दीन ने चंदेरी पर अधिकार कर लिया
  • 1294 ई. में अलाउहीन खिलजी ने देवगिरि का अभियान किया 
  • 1305 ई. में ऐन-उल-मुल्क के नेतृत्व में अलाउद्दीन खिलजी ने अपने सैनिकों का दल मालवा पर आक्रमण करने हेतु भेजा। इस आक्रमण में परमार शासक हरनंद की मृत्यु हो गई। 
  • 1305 ई. को मांडू पर अलाउद्दीन खिलजी की सेना का अधिकार हो गया। महान चंदेल शासक हम्मीरवर्मन् (1289-1308 ई.) के उपरान्त दमोह तथा जबलपुर अलाउद्दीन खिलजी के अधीन हो गया था। इसकी पुष्टि दमोह से 28 किमी. दूर सलैया ग्राम से प्राप्त एक शिलालेख से होती है।

मालवा  के   मुस्लिम शासक 

      दिलावर  खान (1390-1401ईस्वी) तुगलक वंश के अधीन, 1401 से  स्वतंत्र शासक ,धार को अपनी राजधानी बनाया

  • होशंग शाह गौरी (1406-1435)
  • गजनी खां (1435-1436)
  • महमूद खां (1436-1469)
  • गियाथ शाह या गयासुद्दीन खिलजी (1469-1500)

ईश्वर सूरी नामक कवि द्वारा ललिता चरित्र नामक ग्रंथ कि रचना किया

  • महमूद शाह खिलजी 2 -इसने रामचंद्र पुराबिया कों मेदनी राय कि उपाधि दी.

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5 thoughts on “मध्यप्रदेश के इतिहास की महत्वपूर्ण घटनाएँ, प्रमुख राजवंश”

  1. Pinky kushwah says:

    i want to clear the mppsc

    1. Ritesh Kushwaha says:

      Best of luck dear🤞🏻

  2. YASH AGRAHARI says:

    भोपाल शहर को नाम देनेवाले परमार राजा भोज ने इंदौर और धार पर राज किया। गोंडवना और महाकौशल में गोंड राजसत्ता का उदय हुआ। 13 वीं सदी में, दिल्ली सल्तनत ने उत्तरी मध्यप्रदेश को हासील किया था, जो 14 वीं सदी में ग्वालियर की तोमर और मालवा की मुस्लिम सल्तनत (राजधानी मांडू) जैसे क्षेत्रीय राज्यों के उभरने के बाद ढह गई।

  3. Rajkumar says:

    Ispast rup se likha gya hai thankyou

  4. Mandvi vyas says:

    Bahut hi ache tarike se likha gya sab. Or ditiyal me likha he ye website bahut achi he.

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