मध्यप्रदेश लोक सेवा आयोग
– स्थापना : 1 नवंबर 1956
– मुख्यालय : इंदौर
– स्वतंत्र संवैधानिक संस्था ( क्योंकि इसका गठन संवैधानिक प्रावधानों के माध्यम से किया गया है )
– संबंधित अनुच्छेद – 315 से 323
– संबंधित भाग – 14
– प्रथम अध्यक्ष : डी बी रेगे (1 नवंबर 1956 – 17 सितम्बर 1957)
– वर्तमान अध्यक्ष : – वर्तमान सचिव : राजेश लाल मेहरा
– MPPSC द्वारा प्रथम बार परीक्षा का आयोजन : 1958
– अभी तक कोई भी महिला अध्यक्ष नहीं बनीं है
इतिहास :
– भारत शासन अधिनियम 1935 द्वारा प्रांतों के लिए प्रांत लोक सेवा आयोग का गठन
– भारतीय संविधान के 14 वें भाग के 315(1) अनुच्छेद के अनुसार हर राज्य के लिए राज्य लोक सेवा आयोग होगा
– इसके तहत मध्य भारत लोक सेवा आयोग का गठन हुआ ( जो कि 1 नवंबर 1956 से मध्यप्रदेश लोक सेवा आयोग बना )
– राज्य पुनर्गठन आयोग अधिनियम की धारा 118(3) और भारत के संविधान के अनुच्छेद 315(1) के तहत 1 नवंबर 1956 को MPPSC ( मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग ) का गठन हुआ
संरचना :
– एक अध्यक्ष + कुछ अन्य सदस्य ( सदस्यों की संख्या कितनी हो इसका उल्लेख संविधान में नहीं किया गया है )
– सदस्यों की संख्या का निर्धारण राज्यपाल द्वारा किया जाता है ( साधारणतः आयोग में 4 सदस्य होते हैं (max 7))
अर्हता :
संविधान में आयोग के सदस्यों के लिए योग्यता का उल्लेख नहीं है। हालांकि यह आवश्यक है कि आयोग के आधे सदस्यों को भारत या राज्य सरकार के अधीन कम से कम 10 वर्षों तक काम करने को अनुभव हो
– नियुक्ति : राज्यपाल द्वारा
– त्यागपत्र : राज्यपाल को
– कार्यकाल : 6 वर्ष की अवधि या 62 वर्ष ( ना कि 65 वर्ष ) की आयु- पुनः उसी पद पर नियुक्ति नहीं हो सकती
– अध्यक्ष के अनुपस्थित रहने पर या पद रिक्त रहने पर राज्यपाल किसी भी सदस्य को कार्यवाहक अध्यक्ष नियुक्ति कर सकता है
– अध्यक्ष तथा सदस्यों को पद से हटाना : राष्ट्रपति द्वारा ( राज्यपाल द्वारा नहीं)
दिवालिया, मानसिक या शारीरिक अक्षमता या कदाचार के कारण कदाचार के कारण हटाने पर मामला जांच के लिए उच्चतम न्यायालय ( ना कि उच्च न्यायलय ) में भेजना होता है
– इस मामले में उच्चतम न्यायालय की सलाह राष्ट्रपति के लिए बाध्य होती है
प्रमुख बिंदु :
– MPPSC के अध्यक्ष और सदस्य के वेतन और संख्या के लिए MPPSC रेगुलेशन 1973 बनाया गया
– MPPSC में सदस्यों की अधिकतम संख्या 7 हो सकती है (वर्तमान में 4 है)
– मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग के व्यय राज्य के संचित निधि पर भारित होते हैं
– राज्य लोक सेवा आयोग हर साल अपनी रिपोर्ट राज्यपाल को देता है तथा राज्यपाल उस रिपोर्ट को विधान मंडल के समक्ष रखता है
– राज्यपाल राज्य सेवाओं व पद के संबंध में नियमन बना सकता है, जिसके लिए आयोग से परामर्श की आव्यशकता नहीं है।( परन्तु इसे राज्यपाल को कम से कम 14 दिनों तक के लिए विधान मंडल में रखना होता है। विधान मंडल इसे संशोधित या खारिज कर सकता है।)
– आयोग का अध्यक्ष कार्यकाल के बाद
1. या तो UPSC का अध्यक्ष या सदस्य बन सकता है
2. या फिर अन्य राज्य लोक सेवा आयोग का अध्यक्ष ।
3. वह भारत सरकार या राज्य सरकार की किसी और नौकरी का पात्र नहीं होगा
– आयोग के सदस्य कार्यकाल के बाद
1. मध्यप्रदेश लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष या किसी अन्य राज्य लोक सेवा आयोग का अध्यक्ष बन सकता है
2. UPSC का अध्यक्ष या सदस्य बन सकता है
3. भारत या राज्य सरकार के अधीन किसी अन्य नौकरी का पात्र नहीं हो सकता
आयोग के कार्य :
– राज्य सेवा से संबंधित परीक्षाओं का आयोजन
– राज्य सरकार के तहत विभिन्न सेवाओं और पदों के लिए भर्ती नियमों का निर्धारण और संशोधन
– राज्य लोक सेवा आयोग के कार्यों का विस्तार राज्य विधान मंडल द्वारा किया जा सकता है
संबंधित अनुच्छेद –
315 – संघ तथा राज्यों के लिए लोक सेवा आयोग
316 – सदस्यों की नियुक्ति तथा कार्यकाल
317 – लोक सेवा आयोग के सदस्य की बर्खास्तगी एवं निलंबन
318 – आयोग के सदस्यों एवं कर्मचारियों की सेवा शर्तों संबंधी नियम बनाने कि शक्ति
319 – आयोग के सदस्यों द्वारा सदस्यता समाप्ति के पश्चात पद पर बने रहने पर रोक
320 – लोक सेवा आयोग के कार्य
321 – लोक सेवा आयोग के कार्यों को विस्तारित करने की शक्ति
322 – लोक सेवा आयोग का खर्च
323 – लोक सेवा आयोग के प्रतिवेदन
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