मध्यप्रदेश के प्रमुख साहित्यकार
मध्य प्रदेश के साहित्यकारों को उनके समय के अनुसार 3 वर्गों में बांटा जा सकता है
1 प्राचीन काल के साहित्यकार
साहित्यकार | समय | रचनाएँ | भाषाशैली | विशेषता |
कालिदास | ज्ञात नहीं | अभिज्ञान , शाकुंतलम, विक्रमोर्वशीय, मालविकाग्निमित्रम् ,मेघदूत. कुमारसंभव ,रघुवंशम, ऋतुसंहार | कालिदास की भाषा परिष्कृत सरल एवं भावों के अनुकूल हैं उन्होंने संस्कृत भाषा में अलंकार शैली का सहज प्रयोग किया है | अलंकृत पदों में भी मानवीय भावनाओं की सहज और प्रभावपूर्ण प्रस्तुति तथा उनके वर्णन सजीव हैं जीवन तथा प्रकृति के सूक्ष्म निरीक्षण को गंभीरता से बताया है |
भर्तृहरि | भर्तृहरि के काल को कुछ विद्वान ईसा पूर्व 72 तो कुछ विद्वान 7 वी शताब्दी मानते हैं | श्रृंगार शतक,. नीति शतक, वैराग्य शतक | संस्कृत भाषा में एक श्लोकी कविता शैली का प्रयोग किया वह एक श्लोकी कविता के सर्वश्रेष्ठ कवि माने जाते हैं | बहुआयामी व्यक्तित्व मूलतः संत कवि के रूप में जाने जाते हैं |
भवभूति | 8 वीं शताब्दी | उत्तररामचरित ,मालतीमाधव, महावीरचरित | संस्कृत भाषा का प्रयोग गंभीर नाट्य शैली में किया है | इनके नाटकों में गांभीर्य ज्ञान और बुद्धि का अद्भुत प्रदर्शन है इन्हे प्रकृति के भीषण और अलौकिक पक्षों से अधिक लगाव लगता है |
बाणभट्ट | 7 वीं शताब्दी | हर्षचरित ,कादंबरी | बाणभट्ट ने संस्कृत भाषा में गद्य शैली के लिए पांचाली रीति का प्रयोग किया है साथ ही उन्होंने निरीक्षण शैली एवं अत्यंत अलंकारिक शैली का प्रयोग विधि किया है | नये शब्दों ,कथा के भीतर कथा और उप कथाओं का प्रयोग |
मध्य काल के साहित्यकार
साहित्यकार | समय | रचनाएँ | भाषाशैली | विशेषता |
जगनिक | 1230 ईस्वी | आल्हा(खंड महुआ के आल्हा एवं उदल की वीरगाथा) | बुंदेली भाषा की उपबोली बनाफरी का प्रयोग | ओज शैली में गीतात्मक काव्य की रचना की है ! |
केशवदास | 1555 से 1617 ई. | रामचंद्रिका, रसिकप्रिया, वीर सिंह ,चरित्र, कविप्रिया विज्ञान गीता ,रतन बावनी ,जहांगीर जस चंद्रिका,नखशिख, छंदमाला | बुंदेली मिश्रित ब्रजभाषा का प्रयोग किया है | संवाद शैली छंदों की अधिकता और मजबूत कला पक्ष उनके काव्य की प्रमुख विशेषताएं हैं |
सिंगाजी | 1576 से 1616 ईस्वी | खेम द्वारा संकलित परचुरी , पंद्रह तिथि, .बारहमासी | निमाड़ी भाषा में गीत काव्य शैली का प्रयोग | वाचिक परम्परओं में रचना |
भूषण | 1613 से 1715 ईस्वी | शिवा बावनी, छत्रसाल दशक, भूषण हजारा, भूषण उल्लास शिवराज भूषण , | ब्रजभाषा का प्रयोग अरबी, फारसी शब्दों के साथ किया है | मिश्रित भाषा में भाव व्यंजना शैली का प्रयोग किया है |
पद्माकर | 1753 से 1833 ईसवी | अलीजाह प्रकाश ,जगत विनोद, राम रसायन. गंगालहरी. प्रबोध पचासा. कलिपच्चीसी आदि | बुंदेली मिश्रित ब्रजभाषा का प्रयोग | उन्होंने अलंकार एवं रस निरूपण संयुक्त लक्षण शैली का भी प्रयोग किया है ! |
घाघ | 1753 से 1845 ईस्वी के मध्य | घाघ भड्डरी की कहावतें / घाघ की कहावतें कृषि एवं मौसम की जानकारी से परिपूर्ण है | घाघ ने हिंदी की खड़ी बोली का प्रयोग किया है | सूक्ति शैली में कहावत कही हैं |
आधुनिक काल के साहित्यकार
साहित्यकार | समय | रचनाएँ | भाषाशैली | विशेषता |
माखनलाल चतुर्वेदी | 1889 से 1968 | पुष्प की अभिलाषा ,हिमकिरीटनी, हिमतरंगिनी. युग चरण, मरण ज्वार .विजुरी. समर्पण बनवासी .समय के पांव चिंतक की लाचारी. रंगों की बोली आदि | हिंदी ब्रजभाषा में तत्सम तद्भव शब्दों के साथ-साथ उर्दू एवं फारसी शब्दों का प्रयोग बखूबी किया है उन्होंने गद्य शैली एवं पद्य शैली दोनों का प्रयोग किया है | राष्ट्रप्रेम से संबंधित कविता |
ईसुरी | 1898 से 1966 ईस्वी के मध्य | ईसुरी प्रकाश एवं ईसुरी सतसई | ईसुरी ने बुंदेली भाषा व ब्रजभाषा में गायन शैली संयुक्त चौकड़िया छंदों का प्रयोग किया है | छंदों का प्रयोग |
मुल्ला रमूजी | 1896 से 1952 ईस्वी के मध्य | लाठी और भैंस,शादी, औरत जात, अंगूरा. मुसाफिरखाना. तारीख. जिंदगी, शिफा खाना | गुलाबी उर्दू प्रयोग | हास्य-व्यंग्य शैली उर्दू भाषा में प्रयोग |
बालकृष्ण शर्मा नवीन | 1897 से 1960 के बीच | कुमकुम, रशिम रेखा, स्तवन ,उर्मिला अपलक.हम विषपायी जनम के | खड़ी बोली में ब्रज अवधि बुंदेली उर्दू आदि भाषाओं के शब्दों का प्रयोग | प्रकृति के सौंदर्य का छायावादी वर्णन |
सुभद्रा कुमारी चौहान | 1904 से 1948 | झांसी की रानी. राखी की चुनौती .वीरों का कैसा हो बसंत. बचपन. मुकुल .त्रिधारा .बिखरे मोती. उन्मादिनी .सभा के खेल. सीधे-साधे चित्र | हिंदी भाषा में सरल पद्धति का प्रयोग | झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, स्वतंत्रता संग्राम तथा गृहस्थ जीवन पर विशेष लिखा है |
भवानी प्रसाद मिश्र | वर्ष 1914 से 1985 | गांधी पंचशती .गीत फरोश. चकित है दुख .अंधेरी कविताएं .खुशबू के शिलालेख .बुनी हुई रस्सी | खड़ी बोली और बोल चाल के भाषा का प्रयोग | गाँधी ज़ी के जीवन से सम्बंधित ,प्रकृति चित्रण , व्यंग्यात्मक |
गजानन माधव मुक्तिबोध | 1917 से 1964 | चांद का मुंह टेढ़ा है .नए निबंध, भूरी भूरी खाक. धूल एक साहित्यिक की डायरी .कामायनी एक पुनर्विचार आदि | हिंदी भाषा में फैंटेसी शैली का प्रयोग | मध्यवर्गीय जीवन का मानसिक द्वंद विषय,जीवन की कटु सच्चाई का उल्लेख |
हरिशंकर परसाई | 1924 से 1995 | जैसे उनके दिन फिरे .हंसते हैं रोते हैं, रानी नागफनी की कहानी, तट की खोज ,भूत के पाँव पीछे ,बेईमानी की परत, सरदार का ताबीज ,शिकायत मुझे भी है ,पगडंडियों का जमाना | उनकी भाषा सरल और सरस है जिसमे हिंदी उर्दू अंग्रेजी और देसी शब्दों और कहावतों का प्रयोग है | सामाजिक विसंगतियों की चर्चा अपने व्यंग्यात्मक हसोड़ शैली से |
शरद जोशी | 1931 से 1994 | पिछले दिनों रहा किनारे बैठा, जीप पर सवार इल्लियाँ ,फिर किसी बहाने ,अंधों का हाथी, एक था गधा तिलिस्म,.मैं और केवल में . | हिंदी के तत्सम देशज तथा अंग्रेजी के शब्दों का प्रयोग | व्यंगात्मक है लेकिन वह सीधी एवं सरल होने के कारण मर्मस्पर्शी है |
आचार्य नंददुलारे वाजपेयी | मध्य 20वीं शताब्दी | हिंदी साहित्य बीसवीं शताब्दी ,नए प्रश्न ,आधुनिक साहित्य. राष्ट्रभाषा की कुछ समस्याएं. रीति और शैली ,हिंदी साहित्य का इतिहास | हिंदी भाषा में रस छंद अलंकार,आलोचनात्मक शैली | हिन्दी साहित्य का समीक्षात्मक वर्णन |
डॉ शिवमंगल सिंह सुमन | 20 वी शताब्दी | जीवन के गान.हिल्लोल .प्रलय सजन. विश्वास बढ़ता ही गया. पर आँखें नहीं भरीं .विंध्य हिमालय. मिट्टी की बारात. युगों का मोल | संस्कृत एवं उर्दू शब्दों का प्रयोग | प्रकृति एवं मानव जीवन का छायावादी वर्णन |