मध्यप्रदेश की जनजातियां (Tribes of Madhya Pradesh)
शब्दकोश के अनुसार जनजाति एक सामाजिक समूह है जो प्रायः निश्चित भूभाग पर निवास करती है। जिसकी अपनी भाषा, सभ्यता तथा सामाजिक संगठन क्षेत्र है।
- मध्य प्रदेश में कुल 47 जनजातियों पाई जाती है।
- राज्य में सर्वाधिक जनजाति संख्या अलीराजपुर जिले में हैं।
- सबसे कम भिंड जिले में पाई जाती है।
मध्यप्रदेश में पाई जाने वाली प्रमुख जनजातियां:
गोंड, भील,कोरकू, बैगा, कोल, भारिया, सहरिया, बंजारा, पनका आदि।
गोंड जनजाति
- गोंड मध्य प्रदेश की एक प्रमुख जनजाति है। यह जनसंख्या की दृष्टि से भारत की सबसे बड़ी तथा मध्य प्रदेश की दूसरी सबसे बड़ी जनजाति है।
- यह जनजाति मध्य प्रदेश के सभी जिलों में फैली हुई है लेकिन नर्मदा , विंध्य और सतपुड़ा के पहाड़ी क्षेत्रों में इसका अधिक घनत्व है।
- राज्य के बैतूल, छिंदवाड़ा, होशंगाबाद, बालाघाट, मंडला,शहडोल जिलों में गोंड जनजाति पाई जाती है।
गोंड जनजाति की उत्पत्ति
- प्रसिद्ध नृतत्वशास्त्री हिस्लोप के अनुसार गोंड शब्द की उत्पत्ति तेलुगु भाषा के कोड़ शब्द से हुई है जिसका अर्थ है पर्वत अर्थात यह जनजाति पहले पर्वतों में निवास करती थी इसलिए गोंड कहलाई।
- कुछ लोक कथाओं में गोंडो की उत्पत्ति बूढ़ादेव अर्थात महादेव से हुई है।
गोंड जनजाति के लोगों की शारीरिक बनावट
- इस जनजाति में स्त्रियों का कद पुरुषों की अपेक्षाकृत छोटा होता है। इन की त्वचा का रंग काला, केश काले तथा खड़े होने वाले, नासिका भारी व बड़ी,गोलाकार सिर ,छोटे ओंठ, सुगठित शरीर तथा मुंह चौड़ा होता है।इनके चेहरे पर बाल कम होते हैं पुरुष दाढ़ी मूछ नहीं रखते । स्त्री और पुरुष दोनों के शरीर सुगठित होते हैं। ये अत्यधिक परिश्रमी होते हैं।
गोंड जनजाति के संबंध में अन्य तथ्य
- मध्य प्रदेश गोंड जनजाति व्यवसाय के आधार पर कई उप जातियों में विभाजित है, जैसे लोहे का काम करने वाला वर्ग अगरिया, मंदिर में पूजा पाठ करने वाले प्रधान तथा पंडिताई या तांत्रिक क्रिया करने वाले ओझा कहे जाते हैं।
- मध्य प्रदेश की गोंड जनजाति में भाई का लड़का और बहन की लड़की अथवा भाई की लड़की और बहन का लड़का में विवाह का प्रचलन है,जिसे यह लोग दूर लोटावा कहते हैं।
- गोंड जनजाति में वर द्वारा वधू मूल्य नहीं चुकाने की स्थिति में वह भावी ससुर के यहां सेवा करता है ,जिससे खुश होकर उसे कन्या दे दी जाती है । इसे सेवा विवाह कहा जाता है तथा वह व्यक्ति लामानाईं कहलाता है।
- परधान, अगरिया,ओझा,नगरची, सोलहास गोंड जनजाति की उपजाति है।
भील जनजाति
- भील जनजाति जनसंख्या की दृष्टि से भारत की तीसरी तथा मध्य प्रदेश की सबसे बड़ी जनजाति है। यह जनजाति मध्यप्रदेश के पश्चिमी क्षेत्र धार ,झाबुआ और पश्चिमी निमाड़ जिलों में निवास करती है ।यह प्रदेश का सबसे बड़ा जनजाति परिक्षेत्र है। यह मध्य प्रदेश के अतिरिक्त राजस्थान ,महाराष्ट्र एवं गुजरात में भी पाई जाती है।
उत्पत्ति
- भील शब्द की उत्पत्ति संस्कृत भाषा के शब्द भिल्ल से मानी जाती है। वहीं यह भी कहा जाता है कि इस शब्द की उत्पत्ति द्रविड़ भाषा के शब्द बील से हुई है ,जिसका अर्थ होता है धनुष चूंकि ये जनजाति धनुर्विद्या में निपुण होती है इसलिए इन्हे भील कहा गया है।
शारीरिक बनावट
- भील प्रोटो आस्ट्रेलॉयड प्रजाति के अंतर्गत आते हैं। भील जनजाति के लोग का कद छोटा होता है । सामान्यतया इनकी ऊंचाई 4 से 5 फीट के मध्य होती है। शरीर का रंग काला, गहरे काले घुघराले केश, चपटी नाक,चौड़ा चेहरा,बड़े नथुने, गठा बदन आदि इस जनजाति की प्रमुख शारीरिक विशेषताएं है।
निवास
- भीलो का निवास स्थान स्थाई नहीं होता है। यह प्रायः भ्रमण करते रहते हैं । इनके घर आकार में बड़े और खुले खुले होते हैं यह अपने निवास स्थल को फाल्या कहते है।
वेशभूषा
- भीलों में काफी कम कपड़े पहने जाते हैं ।प्रायः पुरुष लंगोटी तथा सिर पर साफा बांधते हैं। जबकि स्त्रियां अंगरखा नामक वस्त्र पहनती हैं। स्त्री तथा पुरुष दोनों ही को आभूषण प्रिय होते हैं ।स्त्रियों में लाल रंग का लहंगा तथा ओढ़नी का प्रचलन अत्यधिक है। यह शरीर पर गोदना गोदवाती हैं तथा पैरों में गिलट, लोहे, चांदी या चांदी मिश्र धातु के आभूषण धारण करती हैं। पुरुष कानों में चांदी की बालियां ,लटकन हाथ में कड़े, सिर पर चाकदार पगड़ी तथा हाथ और पांव में लोहे या गिलट के कड़े पहनते हैं । भीलों के बाल काफी लंबे होते हैं तथा यह इन्हें विभिन्न प्रकारों से सजाते हैं।
- भांगोरिया नृत्य भील जनजाति में प्रचलित है।
- गोल गधेड़ो विवाह प्रथा भी भीलो में प्रचलित है
भोजन
- भील जनजाति का प्रिय खाद्य पदार्थ रबड़ी है। इसके अतिरिक्त मक्का,ज्वार, लावा, कुरा, उड़द की उबली दाल भी इनमें प्रचलित है। इसके अलावा ये मांसाहारी होते हैं तथा इन्हें मदिरापान से विशेष लगाव होता है। ग्रीष्म ऋतु में ताड़ी नामक मद्य पेय पदार्थ का सेवन करते हैं । इसके अलावा मकई, जौ, महुआ आदि की कच्ची शराब बनाकर यह स्वयं भी पीते हैं तथा देवी देवताओं को भी प्रसाद के रूप में चढ़ाते हैं।
बैगा जनजाति
- बैगा मध्य प्रदेश के पूर्वी क्षेत्र में निवास करने वाली विशेष पिछड़ी जनजाति है। यह मंडला, बालाघाट शहडोल तथा सीधी जिलों में पाई जाती है।
- बैगा मूलतः दक्षिण भारतीय जनजाति है। यद्यपि बैगा को द्राविड़ प्रजाति की आदिम जाति कहा जाता है।
- बैगा नाम कि पुस्तक वारियर एल्विन ने लिखी है।
बैगा जनजाति की उत्पत्ति
- बैगा मूलतः द्रविड़ प्रजाति की आदिम जाति मानी जाती है। बैगाओं का रंग काला व त्वचा शुष्क और रूखी होती है। इन के बाल लंबे होते हैं, जिन्हें यह चोटी की तरह बांधते हैं। इनका कद अन्य जातियों की अपेक्षा कुछ लंबा तथा नाक चपटी होती है
रहन सहन
- बैगा बहुत कम वस्त्र धारण करते हैं। पुरुष कमर के भाग में हतोप्स (कमीज) तथा निचले भाग में पटका लंगोटी पहनते हैं । विशेष अवसरों पर इन्हें जेकेट तथा फेटा (साफा) भी पहनते हैं ।पुरुष हाथ में कड़े पहनते हैं। स्त्रियों में आभूषण के प्रति अत्यधिक आकर्षण होता है । वस्त्र में महिला शरीर पर केवल एक साड़ी धारण करती है। महिलाएं धोती भी पहनती हैं तथा उसी में अपने बच्चों को बांध लेती है।
- बेबार झूम खेती करने का प्रचलन बैगा जनजाति में है।
- इनमें शहद पीने का पर्व 9 वर्षों बाद मनाया जाता हैं
कोरकू जनजाति
- मध्यप्रदेश में कोरकु जनजाति सतपुड़ा के वनीय अंचलों मुख्यतः छिंदवाड़ा ,बैतूल जिले की भैंस देही और चिचोली तहसील तथा हरदा, टिमरनी और खिरकिया तहसील और खंडवा की हरसूद, बुरहानपुर जिले के ग्रामों में निवास करने वाली एक प्रमुख जनजाति है ।
- मध्य प्रदेश के अलावा महाराष्ट्र के अकोला, मेलघाट तथा गोशिता में भी कोरकू जनजाति निवास करती है।
शारीरिक विशेषताएं
- कोरकुओं का रंग काला, आंखें काली, नाक कुछ चपटी, नथुने फूले हुए, ओंठ मोटे तथा चेहरा गोल होता है।इनका शरीर बहुत हष्ट-पुष्ट होता है ।इन के गालो की हड्डियां ऊपर उठी होती है, नाक चौड़ी होती हुए भी यह नीग्रो लोगों की तरह नहीं दिखाई देते हैं।
रहन सहन
- कोरकुओं का पहनावा बहुत ही साधारण है। पुरुष शरीर के ऊपरी भाग पर सूती बण्डी और कुर्ता तथा कमर में घुटनों तक धोती पहनते है बच्चे प्रायः नग्न अवस्था में ही रहते हैं।
- कोरकू स्त्रियां रंग बिरंगे , नीले ,हरे,लाल कपड़े पहनती है।
- कोरकू जनजाति चटकोरा नृत्य करते है
सहरिया जनजाति
- सहरिया मध्य प्रदेश की विशेष पिछड़ी जनजातियों में से एक है। यह प्रदेश के उत्तर पश्चिम क्षेत्र विशेष कर गुना, ग्वालियर, शिवपुरी, भिंड,मुरैना, विदिशा, रायसेन, और बुंदेलखंड में निवास करती है।
- सहरिया जनजाति का घनत्व ग्वालियर संभाग में सर्वाधिक है।
उत्पत्ति
- सहरिया कोलेरियन परिवार की संपूर्ण पहचान रखने वाली जनजाति है। फारसी भाषा में सहर का अर्थ जंगल होता है। क्योंकि यह लोग जंगलों में निवास करते हैं अतः इन्हें सहरिया कहा जाता है । एक अन्य प्रचलित धारणा के अनुसार सहरिया शब्द की उत्पत्ति सह-हरिया से हुई है, जिसका अर्थ है शेर के साथ होना।
- इनके निवास स्थल को सहराना कहते हैं।
शारीरिक विशेषताएं
- सहरिया जनजाति के लोगों का कद मध्यम ऊंचा तथा रंग सावला होता है। इनके पहनावे पर राजस्थानी वेशभूषा का प्रभाव स्पष्ट रूप से देखा जाता है। स्त्रियां अपने शरीर पर गोदना करवाती हैं।
अगरिया जनजाति
- अगरिया विशेष उधम वाली गोंडों की उप जनजाति हैl अगरिया मध्यप्रदेश के मंडला शहडोल जिले में पाई जाती है ।
- अगरीया लोगों का प्रमुख देवता लोहासुर है जिनका निवास धधकती हुई भट्टियों में माना जाता है
- यह अपने देवता को काली मुर्गी की भेंट चढ़ाते हैं।
- मार्गशीर्ष महीने में दशहरे के दिन तथा फाल्गुन माह में लोहा गलाने में प्रयुक्त यंत्रों की पूजा की जाती है।
- यह सूअर का मांस विशिष्ट चाव से खाते हैं।
- विवाह में वधू शुल्क का प्रचलन है।
- समाज में विधवा विवाह को स्वीकृति है अगरिया उड़द की दाल को पवित्र मानते हैं, और विवाह में इसका प्रयोग शुभ माना जाता है।
- अगरिया गोंडों के क्षेत्र के आदिवासी लोहार हैं।
- अगरीया प्राचीन काल से ही लौह अयस्क को साफ कर लौह धातु का निर्माण कर रहे हैं।
कोल जनजाति
- कोल मध्यप्रदेश के विंध्य कैमूर श्रेणियों के मूल निवासी हैं
- वे रीवा को अपनी रियासत बताते हैं । यह जनजाति रीवा ,सीधी ,सतना, शहडोल, कटनी,जबलपुर में निवास करती है।
- कोल जनजाति का पूर्व मूल निवास रीवा के बरदीराजा क्षेत्र के कुराली को माना जाता है यह जनजाति मुंडारी अथवा कोल वर्ग की प्रमुख जनजाति है
- यह ऑस्ट्रिक की जनजाति है।
पारधी जनजाति
- पारधी जनजाति मध्यप्रदेश के कई हिस्सों में पाई जाती है ।पारधी शब्द मराठा शब्द पारध का तद्भव रूप है जिसका अर्थ है आखेट।
- अनुसूचित जनजातियों की शासकीय सूची में भी पारधी जनजाति के अंतर्गत बहेलियों को सम्मिलित किया गया है।
पारधी जनजाति की उपजातियां
• भील पारधी, पारधी जो पशु पक्षियों का शिकार बंदूक से भी करते हैं भील पारधी कहलाते हैं।
• चीता को पालने व प्रशिक्षित करने वाले पारधी चीता पारधी कहलाते थे परंतु यह लगभग 100 वर्ष पुरानी बात है।
• गोसाई पारधी यह लोग गेरुआ रंग का वस्त्र धारण करते हैं साधु जैसे दिखाई देते हैं यह लोग हिरणों का शिकार करते हैं।
• बंदर वाला पारधी यह बंदर नचाने वाले पारधी होते हैं।
• फांस पारधी जो शिकार को जाल में फंसाकर पकड़ते हैं उन्हें फांस पारधी कहा जाता है।
• टाकनकर और टाकिया पारधी यह सामान्य शिकारी और हांका लगाने वाले पारधी होते हैं।
• पुराने समाज में मगर का तेल निकालने वाले पारधी शीशी का तेल वाले पारधी कहे जाते हैं।
- लंगोटी पारधी ये वस्त्रों में केवल लंगोटी पहनते हैं इसलिए उन्हें लंगोटी पारघी कहा जाता है।
भारिया जनजाति
- इस जनजाति को जंगलियों में भी जंगली जनजाति कहा जाता है। भारिया जनजाति का विस्तार मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा, सिवनी,मंडला जिले में है। एक छोटा सा समूह छिंदवाड़ा जिले के पातालकोट नामक स्थान में सदियों से रह रहा है। इस क्षेत्र के निवासी शेष दुनिया से अलग-थलग एक ऐसा जीवन जी रहे हैं जिसमें उनकी अपनी मान्यताएं, संस्कृति और अर्थव्यवस्था है जिसमें बाहर के लोग कभी कभार पहुंचते रहते हैं किंतु इन्हें यहां के निवासियों से कुछ खास लेना देना नहीं है।
• पातालकोट का शाब्दिक अर्थ है पाताल को घेरने वाला पर्वत या किला। यह नाम बाहरी दुनिया के लोगों ने छिंदवाड़ा के इस स्थान को दिया है जिसके चारों और तीव्र ढाल वाली पहाड़िया है। पातालकोट में 90% आबादी भारिया जनजाति की है और 10% में दूसरे आदिवासी हैं।
बंजारा जनजाति
- बंजारा भारत की बहुत पुरानी घुमंतू जनजाति है मध्यप्रदेश में बंजारा एक घुमंतू जनजाति के रूप में जानी जाती है ।लेकिन प्रदेश के क्षेत्रों में विशेषकर निमाड़, मालवा, मंडला आदि में बंजारा जनजाति के लोग ग्राम बसाकर रहते हैं जिसे टांडा कहा जाता है।
- प्रारंभ में बंजारा जनजाति के लोग जीवपयोगी सामग्री को बेलों पर लादकर ग्राम-ग्राम ले जाकर बेचते थे जिसे बालद लाना कहा जाता था। ग्रामों में धन की पूर्ति बंजारा लोग ही करते थे।
- बंजारा जाति की पहचान कंघी का आविष्कारक के रूप में जानी जाती हैं।
- बंजारों का मूल उद्गम और निवास स्थान राजस्थान माना जाता है ।बंजारे अपने आप को राजपूतों का वंशज मानते हैं। घुमंतु प्रवृत्ति के कारण बंजारा जाति की संस्कृति सर्वथा अलग प्रकार की बन गई है। इनके रहन सहन, वेशभूषा ,खानपान में एक तरह की विविधता आ गई है ।बंजारे आज भी अपनी कबीलाई जिंदगी की बहुत सी रूढियों को अपनाए हुए हैं।
- कबीले का एक मुखिया होता है जिसे नायक कहते हैं
- कबीलों में सभी तरह की व्यवसाय करने वाले बंजारे नाई, धोबी ,चर्मकार, बढ़ई आदि होते हैं इनमें चारण और चाट भी होते हैं
- बंजारे सिख धर्म से प्रभावित है ।गुरु नानक देव और गुरु ग्रंथ साहिब पर बंजारे अटूट आस्था रखते हैं। विवाह के अवसर पर मुखिया उदासी अरदास पढ़ते हैं ।
- बंजारों में गणगौर पर्व सावन महीने मनाया जाता है जबकि अन्य समाजों में चौत्र वेशाख में मनाया जाता है। बंजारे मिट्टी की गणगौर मूर्तियां बनाकर पूजा करते है।
- तलवार और दंडाबेली उनके पारंपरिक नृत्य हैं।
पनका या पनिका जनजाति
- पनिका जनजाति देवगढ़ प्रजाति की जनजाति है छोटा नागपुर में पनिका के नाम से जानी जाती है। पनिका मुख्यतः छत्तीसगढ़ के मध्य की जनजाति है। इस जनजाति के लोग कबीरपंथी हैं यह कबीरहा भी कहलाते हैं। इस जनजाति के लोग मध्य प्रदेश के सीधी व शहडोल में पाए जाते हैं।
मध्य प्रदेश की जनजातियों से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य
• मध्य प्रदेश में लगभग 47 जनजाति का निवास करती है
- कोल जनजातियों की पंचायत को गोहिया कहा जाता है।
- कोरवा जनजाति की पंचायत को मैयारी कहते हैं।
- मध्यप्रदेश में सर्वाधिक जनजाति जनसंख्या झाबुआ जिले में निवास करती है जहां कुल जनसंख्या का 86% भाग जनजातियों का है
- मध्यप्रदेश का जनजातीय शोध एवं विकास संस्थान भोपाल में स्थित है।
- देश का पहला आदिवासी संचार केंद्र झाबुआ में स्थित है।
- मध्य प्रदेश के अमरकंटक में केंद्र सरकार द्वारा आदिवासियों पर शोध हेतु इंदिरा गांधी आदिवासी विश्वविद्यालय खोला गया है।
- भीलो के मकान को “को” के नाम से जाना जाता है तथा इस स्थान को फल्या कहा जाता है।
- सहरिया, बैगा, व भारिया मध्य प्रदेश की विशेष पिछड़ी जनजातियाँ है।
- मध्यप्रदेश में 1964 में आदिम जाति कल्याण विभाग को स्थापित किया गया जिसका नाम 1965 में बदलकर आदिवासी एवं हरिजन कल्याण विभाग कर दिया गया।
- मध्यप्रदेश की जनजातियाँ प्रोटो ऑस्ट्रेलॉयड्स परिवार का प्रतिनिधित्व करती हैं।
- भगोरिया नृत्य होली के समय भील जनजाति द्वारा मनाया जाता है। इस अवसर पर भील युवक एवं युवतियां अपने जीवनसाथी का चुनाव करते हैं यह 7 दिन तक चलने वाला हाट होता है
- मध्यप्रदेश का बालाघाट जिला हल्वा जनजाति का मुख्य निवास स्थान है । जबकि निमाड़ बंजारों का जबलपुर माडिया गया तथा विंध्य प्रदेश खैरवार जनजाति का निवास क्षेत्र है।
- मध्य प्रदेश की बैगा जनजाति राजकीय वृक्ष साल को पवित्र मानती है क्योंकि इसमें इनकी प्रमुख देव बूढ़ादेव निवास करते हैं।
जनजाति की उपजाति उपजनजाति
गोंड- परधान, अगरिया ,ओझा नगारची, सोलहास।
भील- बरेला भिलाला, पटलिया।
बैगा– बिंझवार, नरोतिया, भरोतिया, नाहर मैना, कठ मैना।
मध्यप्रदेश की बोलियाँ
1. बुन्देलखण्डी – अशोकनगर ,दतिया, गुना, शिवपुरी, मुरैना, सागर, छतरपुर, दमोह, पन्ना, विदिशा, रायसेन, होशंगाबाद, नरसिंहपुर, सिवनी, छिंदवाड़ा, बालाघाट आदि।
2 निमाड़ी – बुरहानपुर, खण्डवा, खरगौन, धार, देवास, बड़वानी, झाबुआ, इंदौर।
3. बघेलखण्डी – रीवा, सतना, शहडोल, एवं उमरिया।
4. मालवी – सीहोर, नीमच, रतलाम ,मंदसौर, शाजापुर झाबुआ, उज्जैन, देवास, इंदौर आदि।
5. बृजभाषा – भिण्ड, मुरैना, ग्वालियर, आदि।
6. कोरकू – बैतूल, होशंगाबाद, छिंदवाड़ा, खरगौर आदि।
7. भीली – रतलाम, धार ,झाबुआ, खरगौन एवं अलीराजपुर।
8.गोंडी-बैतूल ,छिंदवाड़ा,सिवनी. बालाघाट, मण्डला,डिंडोरी होशंगाबाद।
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