अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों के लिए आयोग
आयोग की स्थापना अनुसूचित जाति तथा जनजाति को संविधान या अन्य विधियों के अन्तर्गत संरक्षण प्रदान करने के उद्देश्य से की गई थी
1978 – सरकार द्वारा SC/ST के लिए एक गैर सांविधिक आयोग की स्थापना
1987 – आयोग का नाम बदलकर इसे राष्ट्रीय अनुसूचित जाति एवं जनजाति आयोग कर दिया गया
1990 – 65 वां संविधान संशोधन – आयोग को संवैधानिक दर्जा दिया गया
2003 – 89 वां संविधान संशोधन – आयोग का दो भाग में विभाजन (1. अनुसूचित जाति आयोग 2. अनुसूचित जनजाति आयोग)
अनुसूचित जाति आयोग : अनुच्छेद 338
अनुसूचित जनजाति आयोग : अनुच्छेद 338(A)
पिछड़ा वर्ग आयोग : अनुच्छेद 338(B)
संबंधित भाग : 16
अनुसूचित जातियों के लिए आयोग
-संवैधानिक निकाय (क्यूंकि इसका गठन संविधान के अनुच्छेद 338 के द्वारा किया गया)
संरचना : 1 अध्यक्ष + 1 उपाध्यक्ष + 3 सदस्य
- अध्यक्ष के लिए अर्हता : प्रसिद्ध राजनीतिक तथा सामाजिक कार्यकर्ता हो
- अध्यक्ष, उपाध्यक्ष तथा सदस्य की नियुक्ति : राष्ट्रपति द्वारा
- त्यागपत्र : राष्ट्रपति को
- सेवा शर्तें एवं कार्यकाल : राष्ट्रपति द्वारा निर्धारित (नियमानुसार 3 वर्ष)
- अध्यक्ष तथा सदस्य अपने पद पर दो बार नियुक्त हो सकते हैं
– अध्यक्ष को केंद्रीय मंत्री, उपाध्यक्ष को केंद्रीय राज्य मंत्री तथा सदस्यों को भारत सरकार के सचिव के बराबर का दर्जा होगा
– आयोग अपनी वार्षिक रिपोर्ट राष्ट्रपति को प्रस्तुत करता है। वह जब भी उचित समझे अपनी रिपोर्ट दे सकता है।
– राष्ट्रपति इस रिपोर्ट को संबंधित राज्यों के राज्यपाल को भी भेजता है। जो उसे राज्य के विधानमंडल के समक्ष रखवाता है।
कार्य :
-अनुसूचित जातियों के संवैधानिक संरक्षण से संबंधित मामलों का निरीक्षण
– अनुसूचित जातियों के हितों उलंघन करने वाले मामलों कि जांच पड़ताल तथा सुनवाई
– इनके संरक्षण में किए गए कार्यों की जानकारी प्रतिवर्ष राष्ट्रपति को देना
– इनके संरक्षण हेतु केन्द्र व राज्य सरकार द्वारा उठाए गए कदमों की समीक्षा करना
शक्तियां :
– आयोग को दीवानी (सिविल) न्यायालय की शक्तियां प्राप्त होती है
– भारत के किसी भी भाग से किसी व्यक्ति को समन करना
– किसी दस्तावेज को पेश करने की अपेक्षा करना
– किसी न्यायालय या कार्यालय से किसी लोक अभिलेख या उसकी प्रति की अपेक्षा करना
प्रथम अध्यक्ष : भोला पासवान शास्त्री
प्रथम उपाध्यक्ष : फकीर भाई वाघेला
प्रथम महिला अध्यक्ष : अभी तक कोई नहीं बनी है
वर्तमान अध्यक्ष : विजय सांपला
मुख्यालय : नई दिल्ली
भरत में आयोग के 12 राज्यस्तरीय कार्यालय है।
राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग
स्थापना : 19 फरवरी 2004
मुख्यालय : नई दिल्ली
क्षेत्रीय कार्यालय : 6 ( भोपाल, जयपुर, रांची, भुवनेश्वर, रायपुर, शिलांग)
-संवैधानिक निकाय (क्यूंकि इसका गठन संविधान के अनुच्छेद 338(A) के द्वारा किया गया)
संरचना : 1 अध्यक्ष + 1 उपाध्यक्ष + 3 सदस्य
- अध्यक्ष के लिए अर्हता : प्रसिद्ध राजनीतिक तथा सामाजिक कार्यकर्ता हो तथा अनुसूचित जनजाति का सदस्य हो
- उपाध्यक्ष एवं अन्य सदस्यों में से कम से कम 2 व्यक्ति अनुसूचित जनजाति का होना चाहिए
- अध्यक्ष, उपाध्यक्ष तथा सदस्य की नियुक्ति : राष्ट्रपति द्वारा
- त्यागपत्र : राष्ट्रपति को
- सेवा शर्तें एवं कार्यकाल : राष्ट्रपति द्वारा निर्धारित (नियमानुसार 3 वर्ष)
- अध्यक्ष तथा सदस्य अपने पद पर दो बार नियुक्त हो सकते हैं
– अध्यक्ष को केंद्रीय मंत्री, उपाध्यक्ष को केंद्रीय राज्य मंत्री तथा सदस्यों को भारत सरकार के सचिव के बराबर का दर्जा होगा
– आयोग अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति को प्रस्तुत करता है। राष्ट्रपति ऐसी सभी रिपोर्टों को संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष रखवाएगा।
– जहां कोई रिपोर्ट या उसका कोई भाग किसी ऐसे विषय से संबंधित है जिसका किसी राज्य सरकार से संबंध है तो ऐसी रिपोर्ट की एक प्रति इस राज्य के राज्यपाल को भेजी जाएगी। जो उस राज्य विधान मंडल के समक्ष राखवाएगा।
कार्य :
-अनुसूचित जातियों के संवैधानिक संरक्षण से संबंधित मामलों का निरीक्षण
– अनुसूचित जातियों के हितों उलंघन करने वाले मामलों कि जांच पड़ताल तथा सुनवाई
– अनुसूचित जनजातियों के सामाजिक आर्थिक विकास की योजना में भाग लें और उन पर सलाह दें
– इनके संरक्षण में किए गए कार्यों की जानकारी प्रतिवर्ष राष्ट्रपति को देना
अन्य कार्य :
-वन क्षेत्र में रह रही अनुसूचित जनजातियों को लघु वनोपज पर स्वामित्व का अधिकार देने संबंधी उपाय
– कानून के अनुसार जनजातीय समुदायों के खनिज तथा जल संसाधनों आदि पर अधिकार को सुरक्षित रखने संबंधी उपाय
– जनजातीय लोगों को भूमि से बिलगाव रोकने के उपाय
– जनजातीय समुदायों की वन सुरक्षा तथा सामाजिक वानिकी में अधिकतम सहयोग
– पेसा अधिनियम (PESA), 1996 का पूर्ण कार्यान्वयन सुनिश्चित करने संबंधी उपाय
– जनजातियों द्वारा झूम खेती के प्रचलन को कम करने तथा अंततः समाप्त करने संबंधी उपाय
शक्तियां :
– आयोग को दीवानी (सिविल) न्यायालय की शक्तियां प्राप्त होती है
– भारत के किसी भी भाग से किसी व्यक्ति को समन करना
– किसी दस्तावेज को पेश करने की अपेक्षा करना
– किसी न्यायालय या कार्यालय से किसी लोक अभिलेख या उसकी प्रति की अपेक्षा करना
प्रथम अध्यक्ष : कुंवर सिंह टेकाम
प्रथम महिला अध्यक्ष : उर्मिला सिंह (एक मात्र महिला अध्यक्ष)
वर्तमान अध्यक्ष : हर्ष चौहान
संबंधित अनुच्छेद :
अनुच्छेद 15(4) – अन्य पिछड़े वर्गों (जिसमें अनुसूचित जनजातियां शामिल हैं) के विकास के लिए विशेष प्रावधान
अनुच्छेद 29 – अल्पसंख्यकों (जिसमें अनुसूचित जनजातियां शामिल हैं) के हितों का संरक्षण;
अनुच्छेद 46 – राज्य, जनता के दुर्बल वर्गों के, विशिष्टतया, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के शिक्षा और अर्थ संबंधी हितों की विशेष सावधानी से अभिवृद्धि करेगा और सामाजिक अन्याय एवं सभी प्रकार के शोषण से उसकी संरक्षा करेगा;
अनुच्छेद 350 – पृथक भाषा, लिपि या संस्कृति की संरक्षा का अधिकार;
अनुच्छेद 350 – मातृभाषा में शिक्षण।
अनुच्छेद 23 – मानव दुर्व्यापार और भिक्षा एवं अन्य समान बलपूर्वक श्रम का प्रतिषेध;
अनुच्छेद 24 – बाल श्रम निषेध
अनुच्छेद 244 – पांचवी अनुसूची का उपबंध खण्ड (1) असम, मेघालय, मिजोरम और त्रिपुरा जो छठी अनुसूची के अन्तर्गत, इस अनुच्छेद के खण्ड (2) के अन्तर्गत आते हैं, के अलावा किसी भी राज्य के अनुसूचित क्षेत्रों और अनुसूचित जनजातियों के प्रशासन और नियंत्रण के लिए लागू होता है;
अनुच्छेद 275 – संविधान की पांचवी एवं छठी अनुसूचियों के अधीन आवृत विशेषीकृत राज्यों (एसटी एवं एसए) को अनुदान सहायता।
अनुच्छेद 164(1) – बिहार, मध्य प्रदेश और उड़ीसा में जनजातीय कार्य मत्रियों के लिए प्रावधान;
अनुच्छेद 330 – लोक सभा में अनुसूचित जनजातियों के लिए सीटों का आरक्षण;
अनुच्छेद 337 – राज्य विधान मण्डलों में अनुसूचित जनजातियों के लिए सीटों का आरक्षण;
अनुच्छेद 334 – आरक्षण के लिए 10 वर्षों की अवधि (अवधि के विस्तार के लिए कई बार संशोधित)
अनुच्छेद 243 – पंचायतों में सीटों का आरक्षण;
अनुच्छेद 371 – पूर्वोत्तर राज्यों एवं सिक्किम के संबंध में विशेष प्रावधान;
मध्यप्रदेश राज्य अनुसूचित जनजाति आयोग
- स्थापना : 29 जून 1995(राज्य सरकार द्वारा)
- संरचना : 1 अध्यक्ष + 2 सदस्य + 1 आयुक्त
- कार्यकाल : 3 वर्ष
- नियुक्ति : राज्य सरकार द्वारा
- त्यागपत्र : राज्य सरकार को
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