संवैधानिक संशोधन
संबंधित अनुच्छेद : 368 (संविधान एवं इसकी व्यवस्था में संशोधन की शक्ति प्रदान की गई है)
अनुच्छेद 368 : संसद अपनी विधाई शक्ति का प्रयोग करते हुए संविधान के किसी उपबंध का परिवर्धन, परिवर्तन या निरसन के रूप में संशोधनकर सकता है
हालांकि संसद उन व्यवस्थाओं को संशोधित नहीं कर सकती है, जो संविधान के मूल ढांचे से संबंधित हो
अनुच्छेद 368 में संशोधन की प्रक्रिया :
– संविधान के संशोधन का आरंभ संसद के किसी सदन में किया जा सकता है
– विधेयक को दोनों सदनों में विशेष बहुमत से पारित कराना अनिवार्य है
– विशेष बहुमत : प्रत्येक सदन में उपस्थित सदस्यों के दो तिहाई का बहुमत
– प्रत्येक सदन में विधेयक को अलग अलग पारित करना अनिवार्य है
– दोनों सदनों के बीच असहमति होने पर दोनों सदनों की संयुक्त बैठक में विधेयक को पारित कराने का प्रावधान नहीं है
– यदि विधेयक संविधान की संघीय व्यवस्था के संशोधन के मुद्दे पर हो तो इसे आधे राज्यों के विधानमंडलों से भी सामान्य बहुमत से पारित होना चाहिए
– इसके बाद इसे राष्ट्रपति के पास सहमतिवके लिए भेजा जाता है
– राष्ट्रपति विधेयक को सहमति देंगे। वे ना तो विधेयक को अपने पास रख सकते हैं और ना ही संसद के पास पुनर्विचार के लिए भेज सकते है
– राष्ट्रपति की सहमति के बाद विधेयक एक अधिनियम बन जाता है
संशोधन के प्रकार
- संसद के साधारण बहुमत द्वारा संशोधन
- संसद के विशेष बहुमत द्वारा संशोधन
- संसद के विशेष बहुमत द्वारा एवं आधे राज्य विधानमंडलों की संस्तुति के बाद संशोधन
अनुच्छेद 368 दो प्रकार संशोधनों की व्यवस्था करता है – संसद के विशेष बहुमत द्वारा और आधे राज्यों द्वारा साधारण बहुमत के माध्यम से संसुस्ती द्वारा। लेकिन कुछ अन्य अनुच्छेद संसद के साधारण बहुमत से ही संशोधित किए जा सकते हैं।
साधारण बहुमत :
साधारण बहुमत सदन में उपस्थित सदस्यों का 50% से ज्यादा होता है, उदहारण के तौर पर किसी समय निम्न सदन अर्थात लोकसभा में 543 सदस्य पूरे मौजूद नहीं है, तो उस समय उपस्थिति सदस्यों के 50% से अधिक को ही बहुमत माना जाता है, और यह सामान्य बहुमत कहलाता है |
विशेष बहुमत :
- प्रत्येक सदन के कुल सदस्यों का बहुमत उपस्थित होना चाहिए तथा
- प्रत्येक सदन के उपस्थित सदस्यों के दो तिहाई का बहुमत होना चाहिए
- संविधान के ज्यादातर उपबंध का संशोधन संसद के विशेष बहुमत द्वारा किया जाता है
साधारण बहुमत द्वारा संशोधित किए जाने वाले उपबंध : (ये व्यवस्थाएं अनुच्छेद 368 की सीमा से बाहर है)
- नए राज्यों का प्रवेश या गठन
- राज्यों के नामों का परिवर्तन
- राज्य विधानपरिषद का निर्माण
- संसद सदस्यों के वेतन एवं भत्ते
- नागरिकता की प्राप्ति एवं समाप्ति
- संसद एवं राज्य विधान मंडल के लिए निर्वाचन
- निर्वाचन क्षेत्रों पुनर्निर्धारण
- दूसरी, पांचवीं तथा छठी अनुसूची
- संसद समितियों को विशेषाधिकार
- केंद्रशासित प्रदेश
विशेष बहुमत द्वारा संशोधित किए जाने वाले उपबंध : (संविधान के ज्यादातर उपबंध का संशोधन संसद के विशेष बहुमत द्वारा किया जाता है)
- मूल अधिकार
- राज्य के नीति निर्देशक तत्व
- वे सभी उपबंध जो प्रथम तथा तृतीय श्रेणी में नहीं है
विशेष बहुमत एवं राज्यों की स्वीकृति द्वारा संशोधित किए जाने वाले उपबंध :
- राष्ट्रपति का निर्वाचन एवं इसकी प्रक्रिया
- केन्द्र एवं राज्य कार्यकारिणी की शक्तियों का विस्तार
- केन्द्र एवं राज्य के बिच विधाई शक्तियों का विभाजन
- उच्चतम न्यायालय एवं उच्च न्यायालय
- संसद में राज्यों का प्रतिनिधित्व
- संविधान का संशोधन करने की संसद की शक्ति
संविधान में किए गए प्रमुख संशोधन :
पहला संशोधन, 1951 : 9वीं अनुसूची को जोड़ा गया
सातवां संशोधन, 1956 : भाषाई आधार पर राज्यों का पुनर्गठन
12वाँ संशोधन – गोवा, दामन – दीव को केंद्रशासित प्रदेश के रूप में शामिल किया गया
14वाँ संशोधन, 1963 : पुदुचेरी को UT के रूप में भारत में शामिल किया गया
22वाँ संशोधन, 1969 : असम से अलग कर के मेघालय को नया राज्य बनाया गया
25वाँ संशोधन, 1971 : सम्पत्ति के मूल अधिकार में कटौती
26वाँ संशोधन, 1971 : राज्यों के शासकों की विशेष उपाधियों की समाप्ति
31वाँ संशोधन, 1973 : लोकसभा के सदस्यों कि संख्या 525 से बढ़ाकर 545 कर दी गई
36वाँ संशोधन, 1975 : सिक्किम को भारत का 22वाँ राज्य बनाया गया
42वाँ संशोधन :
- प्रस्तावना में समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष एवं एकता और अखंडता शब्द जोड़े गए
- सभी नीति निर्देशक सिद्धांतों को मूल अधिकारों पर सर्वोच्चता सुनिश्चित की गई
- 10 मौलिक कर्तव्य को अनुच्छेद 51(क) अन्तर्गत जोड़ा गया
- संविधान को न्यायिक परीक्षण से मुक्त किया गया
- इसके अन्तर्गत निर्धारित किया गया कि राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद एवं प्रधानमंत्री की सलाह के अनुसार ही कार्य करेगा
44वाँ संशोधन :
- राष्ट्रीय आपात स्थिति लागू करने के लिए आंतरिक अशांति के स्थान पर सैन्य विद्रोह का आधार रखा गया
- सम्पत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकार से हटा कर विधिक अधिकारों की श्रेणी में रखा गया
45वाँ संशोधन : SC/ST के लिए आरक्षण को अगले 10 वर्षों के लिए बढ़ा दिया गया
61वाँ संशोधन : मतदान के लिए आयु सीमा 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष किया गया
73वाँ संशोधन, 1992-93 :
- 11वीं अनुसूची को जोड़ा गया
- पंचायती राज संबंधी प्रावधानों को सम्मिलित किया गया
- संविधान में भाग 9 जोड़ा गया, जिसमें अनुच्छेद 243, 243 क से 243ण तक हैं
74वाँ संशोधन, 1992-93 :
- 12वीं अनुसूची को जोड़ा गया
- नगरपालिका, नगरनिगम, नगर परिषद से संबंधित प्रावधान किया गया
- संविधान में भाग 9 क को जोड़ा गया, जिसमें अनुच्छेद 243 यद हैं
86वाँ संशोधन, 2002 :
- 6 से 14 वर्ष तक के बच्चों के लिए अनिवार्य एवं निः शुल्क शिक्षा को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता
- इसे अनुच्छेद 21- क के अन्तर्गत संविधान में जोड़ा गया
91वाँ संशोधन, 2003 : दल बदल व्यवस्था में संशोधन
100वाँ संशोधन, 2015 : भारत – बांग्लादेश भूमि हस्तांतरण
101वाँ संशोधन, 2017 : वस्तु एवं सेवाकर (GST) को लागू किया गया
102वाँ संशोधन, 2018 : राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा दिया गया
103वाँ संशोधन, 2019 : स्वतंत्र भारत में पहली बार आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों के लिये आरक्षण की व्यवस्था की गई
104वाँ संशोधन, 2020 : लोकसभा तथा राज्य विधानसभा में SC/ST के लिए आरक्षण के 10 वर्षों तक बढ़ाया गया
भारतीय शासन अधिनियम 1919 एवं 1935
संविधान सभा
राष्ट्रपति एवं उपराष्ट्रपति
प्रधानमंत्री एवं मंत्रिपरिषद
संघीय संसद (राज्यसभा तथा लोकसभा)
नागरिकों के मौलिक अधिकार, कर्त्तव्य एवं राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत